Poem from - BABAL
श्यामल लड़की झाँक रही थी ,
ओट किये खिड़की के।
मतवारा बादल झूम उठा ,
यूं रंग बदले मौसम के।
हवा ऐसे चंचल हो गई ,
जैसे मृग हो मरूधर के।
दो नैनन में डूब गया ,
जैसे समा गया हो सागर के।
बूँद-बूँद हो गई हिम-सी ,
गर्व भरी चट्टानों के।
ऐसी तपिश मिली बबल ,
प्रेम भरी पावक के।
श्यामल लड़की झाँक रही थी,
ओट किये खिड़की के।