आमेर/'गोनेर' का इतिहास (Amber/Goner History) जयपुर

 From - डॉ पुरेन्द्र सिंह पिचानोत

आमेर/'गोनेर' का इतिहास जयपुर 

(डॉ पुरेन्द्र सिंह पिचानोत)
     जयपुर। सांगानेर तहसील और बगरू विधानसभा क्षेत्र में आता है। जयपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर को ‘जयपुर का वृंदावन‘ भी कहा जाता है। देश में पहली बार राज्य खेल परिषद ने 1966 में ग्रामीण खेलों का आयोजन किया था। लोगों का मानना है कि यह मंदिर 500 साल पुराना है।

     इस मंदिर की पूजा सदियों से चली आ रही है। बाद में इस मूर्ति को एक छोटे से मंदिर में अनुष्ठान के साथ स्थापित किया गया फिर धीरे-धीरे इस मंदिर का लोगो को पता चला और लोग मंदिर में इकट्ठा होने लगे क्योंकि इस मंदिर में महाराज की मूर्ति स्थापित की जा रही है। उस मूर्ति में भगवान का वास होता है, जो कोई भी शारदालु मन से मन्नत मांगता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है।

जगदीश मंदिर के दर्शन


     इस मंदिर के दर्शन करना बहुत सरल है इस मंदिर मैं एकादशी को छोड़कर आप कभी भी आ सकते हो क्योंकि एकादशी पर बहुत जायदा भीड़ रहती है, मेला लगा रहता है। पास के गांवो से लोग मंदिर मैं माथा दोगने आते है। बाबा के मंदिर मैं एकादशी पर प्रशासन पूरा बन्दबस करके रखता है  ताकि भीड जमा न हो सके और लोगो को दिकत का सामना न करना पड़े। श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज के मंदिर मैं जो भी श्रद्धालू आये, खाली हाथ नही लोटे। इस मंदिर के पास बहुत बड़ा मार्केट बना हुआ है आपको सुई से लेकर मशीनरी भी मिल जाएगी। 

मंदिर पर आक्रमण

     14 मई सन् 1681 को स्वयं औरंगजेब विशाल सेना लेकर गोनेर जगदीश मंदिर तोड़ने आया। मंदिर तोड़ दिया गया।

मंदिर का पुनःनिर्माण

     गोनेर के युद्ध के समय जयपुर के राजा रामसिंह कछवाहा थे। रामसिंह कछवाहा की तरफ से जागीरदार सुजान सिंह पिचानोत कछवाहा और गज सिंह पिचानोत कछवाहा ने युद्ध लडा़ और वीर गति पाई थी। साथ में पूरे "नायला" और सांभरियाँ  के पिचानोत राजपूतों और अन्य कछवाह राजपूतों  ने भी खूब साथ दिया। 

     युद्ध में लड़ते हुए सुजान सिंह पिचानोत का सिर गोनेर मंदिर से 1 km दक्षिण में कट कर गिर गया था और धड़ मुगलों से लड़ता, काटता, मुगल सेना को पिछे धकेलता हुआ गोनेर के बाहर उत्तर दिशा में तालाब की पाल पर, 1 किमी उत्तर दिशा में जाकर शाँत हुआ। उनकी एक विशाल छतरी बनी हुई है। जो भौमिया जी के नाम से प्रसिद्ध और पूजे जाते हैं।

     भूमि, प्रजा, मंदिरों की रक्षा में सिर कटने के बाद भी लड़ते रहते थे। बाद में तृतीय बार मंदिर का निर्माण सवाई जयसिंह ने सन् 1710 में करवाया। इस तरह से पिचानोत राजपूतों का बलिदान गोनेर के जगदीश जी मन्दिर को बचाने में काम आया, गोनेर की पाल पर सुजान सिंह पिचानोत भौमिया जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

     इसके साथ में दूसरा समान मंदिर सांभरियाँ (सामरिया) में है जिसे भी पिचानोत राजपूतों ने बनवाया जो आमेर के महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा जी और बीकानेर के राठौड राजा राव लुनकरण सिंह जी की बेटी अपूर्वा कवर या बाला बाई के गर्भ से जन्म लिया। 

     आमेर के महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा जी और बीकानेर के राठौड राजा राव लुनकरण सिंह जी की बेटी अपूर्वा कवर या बाला बाई के गर्भ से पाचयण सिंह कछवाहा का जन्म हुआ और उनके नाम से ही उनके वंशज पिचानोत कहलाये।

     आमेर राजा पृथ्वीराज कछवाहा जी ने अपने राज्य को बारह पुत्रो में बराबर विभाजित किया जिसे आज भी राजस्थान पुराना नाम (राजपूताना) में बारह कोटडिया के नाम से जाना जाता हैं। उनी बारह कोटडियो में पाचयण सिंह कछवाहा जी भी शामिल थे। जिनको बारह कोटड़ियो मे से नायला की जागीर मिली, फिर सांभरियाँ (सामरिया) पर अपना अधिकार रखा और इने सामरिया के संस्थापक कहा जाता हैं। 

     इसके बाद शहर (करोली) सहित अन्य 40घोड़े की जागीर मिली। ढिगावड़ा, अलवर को (14 घोड़े की जागीर मिली।), ठिकाना - कैरवाड़ा, अलवर को (12 घोड़े की जागीर मिली।),ठिकाना - खेड़ली पिचानोत, अलवर को (08 घोड़े की जागीर मिली।),ठिकाना - रूपवास, अलवर (4.25 घोड़े की जागीर मिली।), ठिकाना -धोलापलाश, अलवर को (1.75 घोड़े की जागीर मिली।) 

     गोनेर गांव कई बार उजड़ा और वापस बसाया गया. इसके 500 साल बाद सन् 1612 में मूर्ति वापस बाहर निकाली गई। जो आज भी भव्य, दिव्य मंदिर में मौजूद है। आज भी देवादास के वंशजों द्वारा सेवा पूजा की जा रही हैं। गोनेर, जयपुर में, लाखों लोगों की जन आस्था का केंद्र बना हुआ है। 

जय जगदीश हरे।। जय गोनेर।। जय जगदीश हरे।।