दलहनों के आयात से प्रतिबन्ध हटाने के विरोध में प्रस्ताव पारित

 News from - गोपाल सैनी  (कार्यालय सचिव - किसान महापंचायत)

कोराना काल में किसानों पर कहर - देश को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता को रोकने वाला कदम

     उड़द, मूंग, अरहर के आयात से प्रतिबंध हटाने की अधिसूचना 15 मई को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रसारित करना जहां कोराना काल में किसानों पर कहर ढहाने वाला है. वहीं देश को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता से दूर करने वाला कदम है. यह घोषणा होते ही दलहनों के दामो में गिरावट का दौर शुरू हो गया. यह अधिसूचना विदेशों में दलहन की खेती करने वाले एवं आयात - निर्यात करने वाले धनाढ्य व्यापारियों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रसारित की गई है. जिसमें चुनाव लड़ने वाले सत्ताधारी राजनेता, अधिकारी तंत्र (ब्यूरोक्रेसी) भी सम्मिलित है. बड़े पूंजी वाले व्यापारी, शीर्ष पर बैठे अधिकारी तथा सत्ताधारी राजनेताओं के अपवित्र गठजोड़ का यह दुष्परिणाम है. 


      लोकतंत्र में लोक की अवहेलना कर चंद लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए यह अपवित्र गठजोड़ सतत सक्रिय रहता है. इसमें वे उपभोक्ताओं के हितों का उल्लेख कर उसका भार उत्पादक किसानों पर डालता रहता है जबकि यह गठजोड़ अच्छी तरह जानता है कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षार्थ उनको कम दामों पर दाले उपलब्ध कराई जा सकती है. पूर्व में मूंग, चना, उड़द, अरहर आदि दालों को गरीब उपभोक्ताओं को आवंटन किया गया था. इससे उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों के हित संरक्षित रह सकते हैं.

     उत्पादक किसानों को उत्पादों का भारत सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम मूल्य दिलाया जा कर उनके हितों का संरक्षण अपरिहार्य है. इसके परिणामस्वरूप भारत, दलहन उत्पादन में सदा ही आत्मनिर्भर रह सकता है. अभी तो सरकार की नीति के कारण मूंग, उड़द, अरहर, मसूर, चना की सरकारी खरीद कुल उत्पादन में से चौथाई से अधिक नहीं की जा सकती. आवश्यकता इस प्रकार के प्रतिबंध को समाप्त करने की थी सरकार ने इसके उलट आयात पर प्रतिबंध हटा कर अनुचित काम किया है. आयातकों की संख्या नगण्य है जो कुल जनसँख्या में 0.1 प्रतिशत भी नहीं है. 

     सरकार को यह भी बताना चाहिए कि जब 2017-18 में आयात पर प्रतिबंध लगाए गए थे एवं वर्ष 2018 में चना एवं मटर का आयात शुल्क 70% बढाया था, उसको कम कराने के लिए 7 दिन तक कनाडा के राष्ट्र अध्यक्ष के विनती करने पर भी कम नहीं किया था. उससे कौनसी परिस्थिति भिन्न है. अभी पर्यावरण के कारण मौसम के बदलाव से किसानों को दलहन का उत्पादन छोड़ना पड़ सकता है. ऐसी स्थिति में तो आत्मनिर्भरता के लिए सरकार को किसानो को प्रोत्साहन देने के लिए तैयार रहना चाहिए था. इसके विपरीत सरकार ने डी ए पी एवं डीजल के दाम डेढ़ गुणा से अधिक कर खेतियो का खर्चा ही बढाया है. 

     देश के किसान समान आर्थिक हितों के आधार पर एक रहते हुए पूर्व से ही नारा दे रहे है “वे जाति धर्म से तोड़ेंगे, हम मूंग- चने से जोड़ेंगे”. इस दिशा में जिस प्रकार पेट्रो उत्पादों के उत्पादक एवं वितरकों को प्रतिदिन मूल्य वृद्धि कर लाभ दे रही है. उसी प्रकार कृषि उत्पादकों को भी लाभ देने की निति घोषित करनी चाहिए.

     इस ज़ूम मीटिंग में प्रस्ताव रखते हुए किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने संबोधित किया जिसके समर्थन में प्रोफ़ेसर गोपाल मोदानी, नन्दलाल मीणा, सत्यपाल यादव, पिंटू यादव, सुरेश चौधरी, सरदार सुरेन्द्र सिंह, मेमराज, राजेश मालव, प्रकाश मालव, नाथूराम चौधरी, रामेश्वर चौधरी, अमिताभ सिंह, गजेन्द्र सिंह, युवराज नागर एवं प्रदेश संयोजक सत्यनारायण सिंह आदि ने अपने विचार रखे. तदोपरांत सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर भारत सरकार को भेजने एवं राज्य सरकारों को इसके समर्थन का आग्रह किया है. जिससे राज्य सरकारें कृषि उत्पादों के आयात – निर्यात संबंधी निति स्वयं अपनी आवश्यकता अनुसार तैयार कर सकें.