News from - अभिषेक जैन बिट्टू (प्रदेश प्रवक्ता & मीडिया प्रभारी - संयुक्त अभिभावक संघ राजस्थान)
बैठक में संयुक्त अभिभावक संघ अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल भी हुए शामिल
ऑनलाइन क्लास और फीस सबंधी विवादों पर रखे प्रश्न, दिए अहम सुझाव
जयपुर। मंगलवार को राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्षा संगीता बेनीवाल ने कोविड़ 19 के दौरान निजी स्कूलों और अभिभावकों के मध्य ऑनलाइन शिक्षा व फीस सबंधी विवादों के समाधान हेतु सर्वोच्च न्यायालय के आदेश तथा राजस्थान विद्यालय (फीस विनियमन) अधिनियन, 2016 पर चर्चा को लेकर प्रातः 11.30 बजे से दोपहर 1 बजे तक वेबीनर का आयोजन किया।
प्रदेश विधि मामलात मंत्री अमित छंगाणी ने जानकारी देते हुए बताया कि इस वेबीनर में संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल, सुशील शर्मा अध्यक्ष राजस्थान अभिभावक संघ, सुनील यादव अध्यक्ष ऑल राजस्थान पेरेंट्स फोरम, एडवोकेट सुरेंद्र कुड़ी, डॉ सुरेंद्र भास्कर, गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल प्रदेश अध्यक्ष दामोदर गोयल, स्कूल शिक्षा परिवार अध्यक्ष अनिल शर्मा, निजी शिक्षण संस्थान संघ अध्यक्ष बी.एल रणवां (सीकर), सहित राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के समस्त सदस्यों ने भाग लिया।
वेबीनार के दौरान प्रथम उध्बोधन संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने रखा, अपने उध्बोधन में अरविंद अग्रवाल ने कोविड़ काल मे पहली बार विचार संगोष्ठी को लेकर बाल आयोग का आभार प्रकट किया और सकारात्मक कदम के सराहनीय पहल बताया। अग्रवाल ने गोष्ठी के दौरान कहा कि शिक्षा एक संवैधानिक अधिकार है. भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य परंपरा रही है, जिसमें गुरु का दर्जा भगवान से ऊपर दिया गया है।
'गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लगे पांव,
बलिहारी गुरु आपके गोविंद दियो बताय।
आज की व्यावसायिक परिस्थितियों में गुरु शिष्य के अलावा गुरुकुल (आधुनिक समय मे स्कूल) एवं अभिभावक साथ मे आ गए हैं। कोरोनाकाल की विषम और अभूतपूर्व स्थिति में दो तरह के पक्ष सामने आए हैं, कानूनी और मानवीय। कानूनी पक्ष को कोर्ट में अभिभावको और स्कूल प्रबंधकों ने पुरजोर तरीके से कोर्ट में रखा लेकिन मानवीय पक्ष में मानवता शर्मसार हुई।
बाल मन को टटोलने की कोशिश सभी भूल गए हैं। बाल सुलभ मन पर इस विपरीत काल मे क्या असर पड़ा। 1.75 करोड़ बच्चे राजस्थान में स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं जो कि राजस्थान की सम्पूर्ण जनसंख्या का 25 प्रतिशत है, जो देश का भविष्य है,(यह आंकड़े शिक्षा विभाग के है जो 2018-19 के हैं) उस पर क्या असर दूरगामी होने वाला है। कोरोनाकाल में एक साल खराब हो चुका है, आने वाला साल भी कहीं न कहीं धुंधला ही होता दिख रहा है। ऐसे में पौने दो करोड़ बच्चों के पूर्ण शिक्षा से दूर रहने के दूरगामी परिणामों पर होने वाले दुष्प्रभाव पर शिक्षा के अधिकारियों और सरकार को संज्ञान लेना होगा।
ऑनलाइन शिक्षा से बाल मन पर प्रभाव और निजी स्कूलों की हठधर्मिता से शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का हनन और कानून की पालना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार पर आ गई है।
वेबीनार में दिए सुझाव
संघ प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने कोविड़ काल के दौरान चल रही समस्याओं पर प्रश्न उठाने के साथ-साथ सुझाव भी दिए। इस दौरान उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में जिन भी छात्रों के माता या पिता की कोरोना से मृत्यु हुई है सरकार उन बच्चों को उसी स्कूल में अपने खर्चे पर पूरी शिक्षा दिलवाए। बच्चों के सर्वांगीण विकास के कार्यक्रम आगे लाये।
आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है ऐसे में शिक्षा कैसे बच्चों तक आत्मसात की जाए और देश के भविष्य इन बच्चों से कोरोनाकाल आगे प्रभावित न हो पाए ऐसे ही विचार गोष्ठियों के आयोजन से दूरदृष्टि को देख नए नियमों की संरचना पर ध्यान दिया जाए, खाली विभाग और अधिकारियों की खानापूर्ति का कार्य करने की प्रवृति पर रोक लगाने का काम आगे किया जाए।