News From - अरविंद चित्रांश
अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी संगम भारत
पूर्वांचल! हिंदी साहित्य में देश के सर्वश्रेष्ठ "देव पुरस्कार" से सम्मानित आजमगढ़ माटी के लाल,पूर्वांचल के गौरव, हल्दीघाटी के रचयिता पं. श्याम नारायण पाण्डेय का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ के डुमराँव गाँव में हुआ था. आप वीर रस के प्रख्यात कवि और गायक थे. इनके चार महाकाव्यों में से 'हल्दीघाटी और 'जौहर' विशेष चर्चित हुए. हल्दीघाटी में भारत के वीर सपूत महाराणा प्रताप के जीवन और 'जौहर में रानी पद्मिनी पर महत्वपूर्ण व्याख्यान है, हिंदी साहित्य में देश के सर्वश्रेष्ठ देव पुरस्कार की शुरूआत टीकमगढ़ महाराज वीर सिंह जू देव द्वारा 1935 में शुरुआत करते हुए पहला देव पुरस्कार दुलारे लाल भार्गव को कुंडेश्वर में आयोजित समारोह के दौरान दिया गया था. इसके बाद प्रतिवर्ष कुंडेश्वर से ही बसंतोत्सव मेले में प्रतिवर्ष साहित्यकारों को यह पुरस्कार प्रदान किया जाता रहा.
पूर्वांचल के जाने-माने लोककला संरक्षक, अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी संगम भारत के संयोजक अरविंद चित्रांश ने कहा कि पंडित श्याम नारायण द्वारा रचित मेवाड़ के इतिहास में हल्दीघाटी का युद्ध, ग्रीक इतिहास के धर्म पाली घाटी के युद्ध के समान प्रसिद्ध है. राणा प्रताप की वीरता की कहानी भाटों और चारणों की कविता में ही वर्णित थी. कवि हृदय की भावना और अनुभूति का उस कविता में अभाव है. इस कमी को पंडित श्याम नारायण के 'हल्दीघाटी' नामक काव्य में पर्याप्त अंश में पूरा किया है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि "देव पुरस्कार" के लिए लाई गई कविता की पुस्तकों में हल्दीघाटी को अयोध्या सिंह उपाध्याय, रामचंद्र शुक्ल, रावराजा डॉ. श्याम बिहारी मिश्र और डॉ. धीरेंद्र वर्मा ने प्रथम पुरस्कार के योग्य बताया. जिससे पंडित श्याम नारायण पांडेय को मार्च 1940 में देव पुरस्कार मिला. मुगलिया सल्तनत से मरते दम तक टक्कर लेने वाले भारत मां के आन बान और शान के ध्वजा वाहक वीर महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक की वो कविता जो कभी भारत के सरकारी स्कूलों के पाठयक्रम का हिस्सा हुआ करती थी. जिसे हम लोग बड़े ही जोश के साथ अपने हर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गाया करते थे. श्याम नाराणय पांडेय की चेतक पर लिखी कविता भी राणा प्रताप की तरह आज भी दुनिया के आम लोगों के बीच शब्दों में अजर-अमर है ----
रण–बीच चौकड़ी भर–भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से¸
पड़ गया हवा को पाला था।
गिरता न कभी चेतक–तन पर¸
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दोड़ रहा अरि–मस्तक पर¸
या आसमान पर घोड़ा था।।
जो तनिक हवा से बाग हिली¸
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं¸
तब तक चेतक मुड़ जाता था।।