From - मोहम्मद अय्युब खान
बतंगड़,, (वेलेंटाइन डे विशेष)
निम्बाहेड़ा/ दशहरे मेले के दौरान नाथ सम्प्रदाय द्वारा एक ज्ञापन देकर मांग की गई की कवि सम्मेलन में "गोरखधंधा" शब्द का प्रयोग बन्द किया जाए,,, इससे हमारे "गोरखनाथ" का अपमान होता है,ओर हमारी "भावनाएं आहत" होती है,,, पिछले दिनों "पद्मावती" पर राजपूतों की "आहत भावनाएं" आग की तरह पूरे देश मे फैल गयी, वो आग अभी ठंडी भी नही हुई की "टाइगर जिंदा" है पर तीन साल पहले कही गई सलमान खान की किसी बात को लेकर वाल्मीकि युवा समाज की "भावनाएं आहत" हो गई,,
वर्तमान में आँख मारकर रातों रात इंटरनेट सनसनी बनी "प्रिया प्रकाश वरियार" के वीडियो क्लिप्स हिट होते ही हैदराबाद के "मुस्लिम यूथ ग्रुप" ने उसमे से अपने मतलब की "भावनाएं" खोज कर उन्हें "आहत" कर डाली,,, इधर हैदराबाद के फलकनुमा थाने में आंख मारने वाले वीडियो को लेकर "धार्मिक भावनाएं" आहत होने का मामला दर्ज होने के बाद,
वेलेंटाइन-डे पर युवाओं ने अपने मतलब की "भावनाओं" को ढूंढ कर बहस छेड़ दी कि जब आँख मारने पर "भावनाएं आहत" हो सकती है. तो उनका क्या जिन्हें कोई आँख नही मार रहा,,, "भावनाएं तो उनकी भी आहत" हो रही है,,,
देखा जाए तो हम धर्म,जाति ओर सम्प्रदाय के आधार पर कितने ही बंटे हुए दिखते हो लेकिन हमारी आदते ओर "भावनाएं"तो बिल्कुल एक जैसी है,,, इसीलिए आजकल राजनीति का "भावनाएं आहत" करने वाला सूत्र बड़ा कारगर साबित हो रहा है. जिसके तहत राजनीतिज्ञ किसी की भी "भावना"को अपने स्वार्थ के लिए कभी भी "आहत" कर सकते हैं,
अब कौन सी "भावनाएं" कब आहत होगी,, इसका कोई लिखित सूत्र या नियम तो है नहीं,,, भारतीय स्वतंत्रता का यही तो फायदा है, की जब आपको याद आ जाए,, तब ही आप अपनी "भावनाएं" आहत कर सकते है, आज,कल,परसो या बरसों के बाद भी,,,,"आहत" होने वालों का काम ही यह खोजते रहना है,,,, कि अपनी ओर लोगो की "भावनाएं" किस बात पर आहत की जा सकती है,,,
अब तो कुछ दिनों तक अगर "भावनाएं आहत" होने की खबरें नही आती है तो एक खालीपन सा लगने लगता है,,, ओर चिंता सताने लगती हैं कि हमारे विकास में कहीं कोई बाधा तो खड़ी नही हो गयी,,, जो आजकल किसी की "भावनाएं आहत" नही हो पा रही,, वैसे "आहत" होने का भी इतिहास लिखा जाना चाहिए ताकि पता चल सके की किस किस बात पर "भावनाएं आहत" की जा सकती है, जिससे आने वाली पीढ़ी को "आहत"होने में किसी कठिनाई का सामना न करना पड़े,, क्योंकि इतिहास में जिन बातों पर हमारे पुरखे "आहत" होना भूल गए थे उन्हे ढूंढ निकाल कर हम भी तो "आहत" होने का बोझ उठा ही रहे है,,,
बहरहाल, एक तरफ पुरातन ओर विकसित सभ्यता के दम पर हम विश्व गुरु बनने का दावा कर रहे है, वही दूसरी तरफ कुरीतियों रूढ़िवादिता ओर अंधविश्वास को अपने कांधे से नीचे उतारने को तैयार नही है,,, जिस दौर में हम खुद के सहिष्णु होने का ढोल पिट रहे हैं,,, उसी दौर में असहिष्णु कहने मात्र से हमारी "भावनाएं" आहत हो जाती है,, मगर अफसोस आज भी सम्प्रदायिक हत्या,घृणा, बलात्कार,दहेज हत्या,कन्या भ्रूण हत्या,दलित अत्याचार,जैसी असामाजिक और अमानवीय घटनाओं पर हमारी "भावनाएं आहत" नही होती,,
जबकि हमारी तमाम "भावनाएं" मानवता को शर्मसार करने वाले इन जघन्य अपराधों पर "आहत" होंनी चाहिए,,, इसलिए किसी मानव के दिल में कभी भी "भावनाएं आहत" होने का ज्वार उठे,, तो वह मानवता के लिए "आहत" होकर देखे,, बहुत अच्छा लगेगा !