आखिर हिंदी को उसका गौरव कब मिलेगा ?

 From - डॉ शिव शरण "अमल" 

     भारत मे स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जी एस अंएगर व के एम मुंशी की अनुशंसा पर 14 सितंबर 1949 को हिंदी को संघ सरकार की भाषा के रूप मे प्रतिष्ठित कर "राजभाषा" के रूप मे मान्यता दी गई, तभी से प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस तथा सितंबर महीने को हिंदी मास के रूप मे मनाया जाता है।

    अब प्रश्न यह उठता है कि जब राष्ट्र गीत, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रपति, राष्ट्रीय चिन्ह, राष्ट्र गान आदि प्रतीकों मे "राष्ट्र" शब्द रखा गया है तो हिंदी को "राष्ट्र भाषा" की जगह "राज भाषा" का नाम क्यों दिया गया ? क्या हम राष्ट्रपति को राजपति कह सकते हैं ? क्या राष्ट्र गीत और राज गीत का एक ही अभिप्राय है ? क्या राष्ट्र गान और राज गान एक ही हैं? क्या राष्ट्रीय पशु और राजकीय पशु एक ही हैं? क्या राष्ट्रीय पक्षी और राजकीय पक्षी एक ही हैं ? क्या राष्ट्रीय चिन्ह और राजकीय चिन्ह एक ही हैं ? इस पर विचार करने की जरूरत है।

    चलिए अगर शब्दो के तर्क _वितर्क से ऊपर उठकर यह मान भी लें कि राजभाषा और राष्ट्र भाषा एक ही हैं तथा हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है, तो फिर हिंदी इतनी उपेक्षित क्यों है? क्या कोई भी व्यक्ति या राज्य राष्ट्र गीत की उपेक्षा कर सकता है ? क्या कोई व्यक्ति और राज्य राष्ट्र गान की उपेक्षा कर सकता है ? क्या कोई भी व्यक्ति या राज्य राष्ट्रीय प्रतीकों की उपेक्षा कर सकता है ? अगर नहीं तो फिर हिंदी की इतनी उपेक्षा क्यों ?

     यह बात ठीक है कि संविधान की 08 वीं अनुसूची मे शामिल सभी भाषाओं का अपना महत्व है, तथा सभी के विकास का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए, परन्तु हिंदी को राष्ट्र भाषा के अनुरूप तो गौरव मिलना ही चाहिए।व्याकरण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हिंदी एक समृद्ध भाषा है और इसमें विश्व भाषा बनने के पूरी विशेषताएं हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हिंदी अपने ही देश मे उपेक्षित है, आजादी के सत्तर वर्षो बाद भी हिंदी अपना गौरव पाने के लिए तरस रही है।

     आइए हम और आप सब मिलकर इस दिशा मे प्रयास कर हिंदी को उसका गौरव दिलाने मे अपनी महती भूमिका अदा करें।