From - ANAND SHRIVASTAV
अयोध्या में बनने वाले श्री राम मंदिर के लिए निधि संकलन करने के दौरान सांचौर के एक कार्यकर्ता भरत चौहान को विशेष अनुभव मिला। उन्ही के शब्दों में
शायद रामायण के निषाद थे ये बन्धु.....नर्मदा नहर आने के बाद काफ़ी परिवार अपने अपने खेत में बस गए है। दिनभर घूमते घूमते शाम के 7 बज रहे थे समर्पण निधि की टोली गांव के एक पाऊवा परिवार के मुखिया छगनलाल के घर पहुंची। घास फ़ुस का एक छपरा बनाया हुआ है. ना कोई रसोईं, ना कोई कमरा, खुले आसमान के नीचे गृहणी बच्चे को हाथ में लेकर सब्जी बना रही थी.
राम मंदिर निधि को लेकर समझाया एक पेम्पलेट दिया और कहा कि हर परिवार का एक छोटा सा हिस्सा चाहते है आप चाहे तो 10 रूपये भी दे सकते आप चाहे तो 100 रूपये भी दे सकते है। परिवार की स्थिति देखकर मुझे लगा की शायद 10 रूपये यहाँ से मिल जाए तो बहुत होगा,लेकिन मुखिया ने छपरे में जाकर एक प्लास्टिक की पोटली को टटोलते हुए 500 रूपये की नोट लेकर आया,,,,,
मैंने कहां कितने की रसीद काटू ?
तो कहा पुरे पांच सौ रूपये की,,,,,मेरे हाथ रुक गए फिर पूछा आप घर में भी बात कर लो कोई ज़बरदस्ती नहीं है। हर रामभक्त को जोड़ना ही उद्देश्य हैं। आप चाहे तो 10 या 100 रूपये भी दे सकते हो, क्योकि उस घर की ऐसी हालत थी कि हमारा मन 500 रूपये लेने को नही कर रहा था,,,
'फिर गृहणी ने कहा कि भाभा यह तो राम के काम में जा रहा है ऐसा सौभाग्य हमें कहा मिलेगा,,,वैसे भी हॉस्पिटल में लगते है बिना फालतू खर्च होता है उसका लेखा जोख़ा कहा कहा करेंगे ? यह तो नेक कार्य में जा रहा है रामजी की कृपा रही तो ईश्वर हमें खूब देगा,,,,,,बड़ी मुश्किल से मैने 100-100 रूपये के पांच कूपन काटकर परिवार के मुखिया को दिए,
प्रभु श्री राम के प्रति इस गरीब परिवार की आस्था देखकर मन भावुक हो गया। यह 500 रुपये करोड़ों रुपए के बराबर है, हमे तो यह बहुत अमीर लगा। रामजी की कृपा इस निषाद पर बनी रहे।