यू. पी. सरकार द्वारा बनाये गये " धर्मांतरण कानून" से सनातन धर्म की भटकी बेटियों और परिवार को कुछ हद तक सुरक्षा मिलेगी और सनातन और सनातनियों को कमज़ोर करने की कोशिश नाकाम होगी लेकिन यह ईलाज फुनगी से है जबकि इसका हल जड़ से होना चाहिये और इसके लिये सनातन धर्म की संस्थाओं, संगठनों, संघों को कार्य करना चाहिए। इस हेतु सबसे पहले अपने धर्म के बारे में सत्यता समाज, परिवार में परोसनी होगी और इस हेतु गुरुकुल पद्धति, वैदिक पद्धति पर आधारित शिक्षण संस्थानों की अति आवश्यकता है।
इस हेतु मंदिरों के फंड को उपयोग में लाना चाहिये और साथ में सनातन का भला चाहने वाले लोगों से सहयोग भी लेना चाहिए क्योंकि अधिकतर हिन्दुओं को अपने धर्म के बारे में सही जानकारी नहीं है. वे केवल मंदिर जाना और पूजा - पाठ करना ही अपना धर्म समझते हैं जबकि सनातन अति विशाल है. सनातन में जन्म लेना श्रेयस्कर। जब से यह पृथ्वी है तभी से सनातन है, जो कि परब्रह्म श्री चित्रगुप्त और त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा प्रदत्त है. इसमें छेड़ - छाड़ कर ज्ञानी जनों ने अपनी - अपनी दुकानदारी चलाने के लिए पंथ, अन्य धर्म की स्थापना किये हैं जिससे व्यक्ति पूजा शुरू हो गई जो कि सर्वथा गलत है.
सभी लोकों की व्यवस्था, सृजन, जन्म, पालन - पोषण और अंत श्री चित्रगुप्त सहित त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अधीन है और खासकर पृथ्वी लोक में मानव द्वारा अनन्य लीलाएं की जाती हैं ताकि सभी एक दूसरे द्वारा बंधे रहे लेकिन धर्मों के श्रेष्ठों के सोंच में गिरावट ही पृथ्वी पर उथल-पुथल के कारणों में से एक है. इस हेतु समाज को सभ्य रखने हेतु नये - नये कानून बनते हैं और तरह तरह की amendment होती रहती है और " धर्मातरण कानून" उसी सुधार में एक कड़ी है ताकि सनातन धर्म के भटके युवक - युवतियों को सही राह मिल सके.
धर्म में संस्कार बहुत ही मायने रखता है और जिन्हें धर्म के सम्बंध में ज्ञान होता है वे सांस्कारिक होते हैं. उनमे भटकाव नहीं के बराबर होता है. इसलिये प्रत्येक माता - पिता और परिवार के श्रेष्ठों का यह कर्तव्य बनता है कि वे अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दें जिससे उनमें भटकाव नहीं के बराबर हो और बड़े होने पर अपने वैवाहिक फैसले सही ले सकें। जय हिंद