(कल के अंक का शेष भाग - लेखक रवि आनंद वरिष्ठ पत्रकार हैं और हिंदी सिनेमा से भी जुड़े हुए हैं.)
15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी शासन व्यवस्था से आजादी मिलने के बाद भी आज-तक हम गुलाम ही बने हुए हैं। पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के तो आज मल्टीनेशनल कंपनियों के गुलाम बने हुए हैं, तब हम बाजार और उत्पादक देश थे और आज हम उपभोक्ता देश बने जिसके पीछे मैकाले और आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू का भी योगदान रहा जो जाने अनजाने वही किया जो अंग्रेजी शासन व्यवस्था उनके माध्यम से भारत की जनता के खिलाफ करवाना चाहती थी। परिणामस्वरूप आजादी के जीडीपी और वर्तमान जीडीपी की तुलना की जा सकती है।
(Photo - Ravi Anand)
प्राचीन भारत से ही अंग्रेजी शासन व्यवस्था से पूर्व तक भारत में गुरुकुल की शुरूआती शिक्षा के बाद बाद ऋषिकुल में जीवन और जीवीवक को लेकर पढ़ाई होती थी। उस वक़्त जब कॉम्ब्रिज और ऑक्स्फोड में भी इतने विभाग नहीं था जितने भारत में था उस वक़्त भारत में क्या पढ़ाई होती थी ये जान लेना भी आवश्यक है।
1. अग्नि विद्या ( metallergy )
2 वायु विद्या ( flight )
3 जल विद्या ( navigation )
4 अंतरिक्ष विद्या ( space scienc)
5 पृथ्वी विद्या ( environment )
6 सूर्य विद्या ( solar study )
7 चन्द्र व लोक विद्या ( lunar study )
8 मेघ विद्या ( weather forecast )
9 पदार्थ विद्युत विद्या ( battery )
10 सौर ऊर्जा विद्या ( solar energy )
11 दिन रात्रि विद्या
12 सृष्टि विद्या ( space research )
13 खगोल विद्या ( astronomy)
14 भूगोल विद्या (geography )
15 काल विद्या ( time )
16 भूगर्भ विद्या (geology and mining )
17 रत्न व धातु विद्या ( gems and metals )
18 आकर्षण विद्या ( gravity )
19 प्रकाश विद्या ( solar energy )
20 तार विद्या ( communication )
21 विमान विद्या ( plane )
22 जलयान विद्या ( water vessels )
23 अग्नेय अस्त्र विद्या ( arms and amunition )
24 जीव जंतु विज्ञान विद्या ( zoology botany )
25 यज्ञ विद्या ( material Sc)
ये तो बात तो वैज्ञानिक विद्याओं की अब बात करते है व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की
वाणिज्य ( commerce )
कृषि (Agriculture )
पशुपालन ( animal husbandry )
पक्षिपलन ( bird keeping )
पशु प्रशिक्षण ( animal training )
यान यन्त्रकार ( mechanics)
रथकार ( vehicle designing )
रतन्कार ( gems )
सुवर्णकार ( jewellery designing )
वस्त्रकार ( textile)
कुम्भकार ( pottery)
लोहकार (metallergy)
तक्षक रंगसाज (dying)
खटवाकर रज्जुकर (logistics)
वास्तुकार ( architect)
पाकविद्या (cooking)
सारथ्य (driving)
नदी प्रबन्धक (water management)
सुचिकार (data entry)
गोशाला प्रबन्धक (animal husbandry)
उद्यान पाल (horticulture)
वन पाल (horticulture)
नापित (paramedical)
यह सब विद्या गुरुकुल और ऋषिकुल में सिखाई जाती थी पर समय के साथ साजिश कर गुरुकुल शिक्षा को लुप्त कर दिया गया आजादी के बाद भी भारत की सरकार ने भी गुरुकुल शिक्षा पद्धति के स्थान पर कॉन्वेंट और मदरसों की शिक्षा प्रणाली को जारी रखा। अभी CBSE और अन्य बोर्ड ने परीक्षा परिणाम जारी किया सभी बच्चों ने अच्छा अंक प्राप्त किए भी है पर भविष्य के लिए उन्हें कुछ भी आशावान नहीं बनती है क्योंकि उनके परिणम से उनकी आजीविका का निर्धारण नहीं हो पाया। मैकाले की शिक्षा ने हमे बेरोजगार बनाया। सरकार या शासन व्यवस्था पर भी यह युवा पीढ़ी को बोझ ही बनती जा रही तभी तो वर्तमान समय की सरकार स्किल इंडिया की बात करने पर मजबूर हुई है।
आज किसी भी छात्रों को मार्कशीट बेचकर भी कुछ रोजगार भी नहीं प्राप्त होंगे? और हमारी संस्कृति को अवेज्ञानिक बताने वाले लोगों को भी हमने जो ज्ञान दिया था उसे अब मानना पड़ा इसका एक उदाहरण उज्जैन है जिसे पृथ्वी का केंद्र माना जाता है, जो सनातन धर्म में हजारों सालों से मानते आ रहे हैं। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले तब और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क) अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायी गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला।
आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये। इन्हीं जैसे अनेक ज्ञान की बात को नष्ट करने के लिए नालन्दा विश्वविद्यालय को जलाया गया। पर भारतीय संस्कृति में नकारात्मक सोच को नजरअंदाज कर सकरात्मक सोच को प्राश्रय दिया जाता है। तभी तो नालन्दा विश्वविद्यालय को आग लगने वाले बख्तियार ख़िलजी के नाम पर नालंदा में ही एक शहर बसा है।
नालन्दा विश्वविद्यालय को जलाने वाले को भी हमने शिर्फ़ ना केवल सम्मान दिया बल्कि आज भी उनके द्वारा स्थापित शहर को भी संजोय है क्योंकि भारतीय संस्कृति में ज्ञान का बहुत महत्व दिया जाता है बख्तियार ख़िलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर विश्व का नुकसान किया। पर वो अपने देश और धर्म से प्यारा करता था पर हम ना तो अपनी संस्कृति और ना ही अपने देश से ही प्यारा करते हैं। तभी तो कोरोना काल में भी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को पुनर्जीवित करने के स्थान पर उस चिकित्सा पद्धति पर भरोसा करने वाले हैं जिसमें रोगों का इलाज कभी किया ही नहीं है।
लेखक - रवि आनंद (वरिष्ठ पत्रकार)