कुछ तो बात रही होगी - कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

आज का लेख  "कुछ तो बात रही होगी, कि हस्ती मिटती नहीं हमारी " लेखक (रवि आनंद) की अपनी रिसर्च है.   


     वर्तमान समय में जब नेपाल, भूटान, पाकिस्तान ने भारत से सीमा विवाद का मामला उठाया है, वही चीन जापान और रूस के अलावा वियतनाम और चीनी ताइपे तिब्बत को आज से दो सौ साल पहले की चीनी साम्राज्य का हिस्सा मान कर अभी वर्तमान समय में सीमा साम्रज्य को बढ़ाने की बात कर रहा है। इन मामलों को लेकर अमेरिका विश्व चौधरी के रूप में अपनी सैन्य शक्ति को अलर्ट कर रखा है। वहीं भारत अपने पड़ोसी देशों से दो देशों का मामला बताते हुए किसी भी आंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता से इंकार करता हुआ आ रहा है। पर दुनिया भर में इस तरह की समस्या देना वाला देश आज विवादित विषय पर अपनी प्रतिक्रिया भी देने से बचता है। प्राचीन सोने की चिड़िया कही जानेवाली देश अखण्ड आर्यावर्त को इंडिया तक का सफर भी बहुत दिलचस्प रहा है।


(फोटो - लेखक रवि आनंद) 



     इतिहास में अगर गौर करें तो भारत पर आक्रमण की बात कई जगह दर्ज है पर कहीं पर इसके वर्तमान पड़ोसी देशों का ज़िक्र किया गया है, भारत के इर्दगिर्द चीन तिब्बत, मंगोलिया फारस और यूनान का ज़िक्र कुछ जगहों पर मिलता भी है। पर अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, मालदीव या बांग्लादेश का ज़िक्र भी प्राचीन इतिहास में तो नहीं मिलता जो हमारे साथ सीमा विवाद का प्रश्न किसी तीसरे के कहने पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की कोशिश करते हैं।


      इसके लिए हमारे देश के बुद्धिमान वर्ग माने जाने वाले पत्रकार मित्रों ने, ना कभी कुछ लिखा और ना पढ़ने की कोशिश की और ना ही जनता को ही अपनी गौरव के याद करने में मदद की। पर छोटे से यूरोपीय देश ब्रिटेन को कैसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र द ग्रेट ब्रिटेन को महिमामंडन में कोई कसर नहीं छोड़ी। तभी आज की वर्तमान पीढ़ी को भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति का थोड़ा भी एहसास नहीं है, पिछले तीन सौ साल में जो देश अर्श से फर्श पे आ गया वो सच सही है या वो जो पांच हजार साल से मिटाने की दुनिया भर की कोशिशें के बाद भी यह कहना पड़ जाता है - 


                                "कुछ तो बात रही होगी, कि हस्ती मिटती नहीं हमारी".


     आज दुनिया को आँख दिखने वाला मुल्क चीन कभी भारत में शिक्षा दीक्षा लेने आया करता था। जिसका जिक्र भी प्राचीन काल में चीनी यात्रियों ने समय-समय पर किया है। प्राचीन काल में भारत के बौद्ध तीर्थ स्थलों की यात्रा करने वाले चीनी यात्री फाहियान और ह्वेनसांन के यात्रा विवरणों से भी वर्तमान बिहार राज्य और ऐतिहासिक पाटलिपुत्र के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। तब दुनिया भर में नेपाल को भी नहीं जाना जाता था और आज नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली का कहना है कि बिहार का कुछ भू भाग नेपाल का है और नेपाल में अयोध्या थीं और यहां के बुद्धिजीवी वर्ग खामोश हैं तो आश्चर्य लगता है। 


     चीनी यात्रियों में से एक ने ईसा पूर्व की पाटलिपुत्र को याद करते हुए सातवीं शताब्दी में कहा था कि फाहियान लिखता है पाटलिपुत्र में मौर्यों का राजप्रासाद अब भी वर्तमान है। दर्शक को ऐसा आभास होता था मानो इसका निर्माण देवताओं ने स्वयं किया है। इसकी दीवारों और द्वारों में पत्थर चुनकर लगाए गए थे । इसमें सुंदर नक्काशी और पच्चीकारी की गई थी वह विश्व के किसी मानव से संभव नहीं था। 


     फाहियान गुप्त शासकों के समय भारत आया था । उसके यात्रा विवरण से पाटलिपुत्र नगर की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है ।चीनी यात्री ह्वेनसांग बताता है कि पाटलिपुत्र की हालत खराब होती जा रही थी। चंद्रगुप्त मौर्य के काल में भारतवर्ष एक सूत्र में बंधा और इस काल में भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति की। सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 269-232) प्राचीन भारत के मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र और चंद्रगुप्त का पौत्र था जिसका जन्म लगभग 304 ई. पूर्व में माना जाता है।


     जब अशोक को राजगद्दी मिली तब उसने साम्राज्य को विस्तार देने के लिए 260 ईपू में अशोक ने कलिंगवासियों पर आक्रमण किया तथा उन्हें पूरी तरह कुचलकर रख दिया। युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट से अशोक की अंतरात्मा को तीव्र आघात पहुंचा। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वे प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध धर्म अपनाकर भिक्षु बन गए। जहां तक प्राचीन भारतवर्ष का संबंध है तो इसकी सीमाएं हिन्दुकुश से लेकर अरुणाचल, कश्मीर से कन्याकुमारी तक और एक ओर जहां पूर्व में अरुणाचल से लेकर इंडोनेशिया तक और पश्चिम में हिन्दुकुश से लेकर अरब की खाड़ी तक फैली थीं। लेकिन समय और संघर्ष के चलते अब भारत इंडिया बन गया है। कैसे और क्यों? यह बड़ा सवाल है।


     भारत के लोगों को अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा दी कि वो चीन के आगे ही नतमस्तक होते जा रहे हैं तभी तो भूटान नेपाल भी दिल्ली को आँख दिखा रहा है क्योंकि अंग्रेजों ने हमें गोली और अत्याचार से ज्यादा प्रहार हमारी संस्कृति और हमारी सोच पर किया है। मैकाले पद्धति से हमारे देश के युवाओं का भविष्य नष्ट किया क्योंकि उसे पता था अगर भारत को जीतना है तो भरतीय जनमानस को ही अंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा देकर काली चमड़ी में अंग्रेजी बोलने वाले लोग ही भारत को हरा सकते हैं क्योंकि जहां विश्व विजेता सिकन्दर हार गया था वहीं पृथ्वीराज चौहान को हराने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गोरी की मदद की थी।


     मीर कासिम की तो कमी हिंदुस्तान में बहुतायत थी जिसके कारण मैकाले ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के लिए शिक्षा पद्धति पर जबरदस्त प्रहार किया। लेकिन उसके इस प्रयास को तत्कालीन समाज ने बुरी तरह से नकार दिया था. कोलकाता में स्थापित भारत का पहला कॉन्वेंट को बंद करना पड़ा, पर समय का चक्र ऐसा घूमा कि मैकेल द्वारा अपने पिता को लिखे  गए  पत्र की हर एक बात सच हुई।


Note - शेष भाग कल के अंक में प्रकाशित होगा....  (लेखक - रवि आनंद)