जनता को भुला कर मसाला के इर्दगिर्द गुमराह हुई मीडिया

     मंगलवार को राजस्थान कांग्रेस में जो घटनाक्रम हुआ, उसमें नया कुछ भी नहीं था। इसलिए लोगों में ना तो घटनाक्रम को लेकर उत्तेजना  थी और ना ही परिणाम से आश्चर्य ही हुआ। बस मीडिया में मसाला बदल गया। भारत-चीन को युद्ध के मुहाने पर छोड़ कर जो मीडिया विकास दुबे के पीछे पड़ी थी। उस मीडिया को गलवान जाने से सचिन पायलट ने रोके रखा। वरना अजकल कोरोना काल में जब लोगों ने घरों में खुद को आइसोलेशन में रखा है. वहां मीडिया के परमप्रतापी बहादुर वीर सड़कों और गलियों में सरकार के राष्ट्रवादी चेहरे को संवारने के लिए तैयार घूम रहे हैं। चाहे उन पत्रकार बन्धु के जीवन-यापन और जीवनलीला दोनों पर ही संकट क्यों ना आ जाए।


     ऐसे पत्रकार शायद ये भूल गए हैं कि वो क्या करने के लिए घर से निकले थे और आज वो कहां जा रहे हैं। तोप के सामने अखबार निकलने वाले पत्रकार अब तो होप के सामने भी मुंह छिपाने में लग जाते हैं। दुनिया भर में सबसे सम्मानित पेशाओं में शामिल पत्रकारिता सिर्फ और सिर्फ समाज के हितों का लेखा-जोखा रखने का काम करती थी, पर आज अपने इर्दगिर्द भी देख नहीं पा रहे हैं। 


(Photo - लेखक - रवि आनंद, वरिष्ठ पत्रकार)



     अतीत में जब एक दुबला-पतला व्यक्ति झोले में कागज और डायरी लेकर पैदल ही किसी सरकारी दफ्तरों में पहुंच जाते थे तो वहां के कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक के पसीने छूट जाते थे कि कल के अखबार में किसकी शामत आएगी। मोदी सरकार से पहले रेलवे मंत्रालय पर हर मंत्री की पहली पसंद होती थी। मंत्रियों ने जब संविधान की शपथ ली थी तो पद और गोपनीयता के साथ देशहित में हर फैसले करने की बात करने वाले मंत्री को जब सेवा ही करना होता तो वो बगैर पद के भी सेवा कर सकते थे। मंत्रियों के सुख- सुविधाओं का विरोध कर सत्ता में आए एक राजनीतिक दल ने भी परंपरा के नाम पर तमाम सरकारी सुविधाओं का भरपूर उपयोग किया और जनता के विश्वास का एक प्रकार से हत्या ही कर दी। वहीं पत्रकारों को आकर्षित करने वाले राजनीतिक दल से सत्ता पाने के बाद कभी भी किसी मीडिया संस्थानों ने यह नहीं पूछा कि आपने जो वचन जनता को चुनाव पूर्व दिये थे उसे पूरा क्यों नहीं किया?


     पर आज पत्रकारिता खबर दिखने बताने की जगह खबर बनाने में लगी है. मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के विषेशाधिकार कैबिनेट के लिए भी मंत्रिमंडल की सूची पहले से जारी कर पत्रकार सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं। मंत्री तो सत्ता धारी दल से चुने गए विधायक ही होंगे पर अपने चहेतों का नाम उछाल कर अपनी मर्यादा को भी तार- तार कर देते हैं। वैसे ही भाषा को लेकर भी पत्रकारिता में जंग की स्थिति बनी रहती है. दुनिया भर में पत्रकारिता अपनी मातृभाषा में भी की जाती है पर हमारे यहां देवभाषा और मातृभाषा को छोड़कर आधिपत्य की भाषा की पत्रकारिता को श्रेष्ठ माना गया क्योंकि इससे कॉमनवेल्थ राष्ट्र की महारानी को सूचना प्रेषित की जा सके।


     15 अगस्त1947 से ही हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को याद रखे। हम इस बात को भूल गए कि 1857 के पहले भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। पिछले 2,500 वर्षों में भारत पर यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फ्रेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल और अंग्रेजों ने आक्रमण किए हैं। पर हम बात केवल अंग्रेजों की गुलामी की ही करते हैं। इतिहास के पन्नों पर जहां भारत की गौरवपूर्ण इतिहास को बदलने की कोशिश की गई वहीं भारत के भूगोल को भी बदला है। इतिहास में भारत पर आक्रमण की बात कई जगह दर्ज है पर कहीं पर भी यह दर्ज नहीं है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, मालदीव या बांग्लादेश पर आक्रमण किया गया हो। इसके लिए हमारे बुद्धिमान वर्ग माने जाने वाले पत्रकार मित्रों ने ना कभी कुछ लिखा और ना पढ़ने की कोशिश की। दुनिया से लैटिन भाषा का क्षय हो कर मजदूरों की भाषा अंग्रेजी दुनिया भर में सिरमौर बनकर घूम रही हैं वही भाषा की जननी अपनी वृद्धावस्था में समाज में भाषा और संस्कृति का ह्रास देख रही है।


     इसी भारतीय संस्कृति ने आगन्तुकों के लिए देवता शब्द देकर अतिथि देवो भव बताया वहीं विदेशी भाषा और पड़ोसी देश की संस्कृति ने यह सिखाया कि आप अपने पिता पर भी विश्वास मत करो तब हम विदेशी जुवान वाले पत्रकार मित्रों से कैसे उम्मीद करें कि वह भारत के हितों को ही साधने के लिए पत्रकारिता में आए हैं । यहां संदेह तब और भी बढ़ा जब देश पर संकट आया है तो विदेशी भाषा के पत्रकार विदेशी जुबान में ही देश से सवाल करते हैं। उन्हें राष्ट्र से मिली आजादी भी विदेशी हितों के लिए गुलामी लगती है।


     पत्रकारिता में आए बहुत सारे बड़े बड़े पत्रकारों ने सरकार के व्यवस्था दोष को भी फायदे -नुकसान के तराजू पर तौल कर पत्रकारिता की ठीक उसी प्रकार से जैसे नौकरशाह अधिकारियों ने अधिकार तो सब लिए पर कर्तव्यों की जिम्मेवारी कहीं भी नहीं ली। तब ही तो देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय जीप घोटाले का जो सिलसिला चला वो 4G तक भी नहीं रुका।
   


     1952 के आम चुनावों में महज़ 3 लोकसभा सीटों पर विजय दर्ज करने वाली जनसंघ, 1962 तक देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी। मुख्यत: समान नागरिक संहिता, गौहत्या, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य के दर्जे की समाप्ति तथा हिन्दी के प्रचार-प्रसार आदि मुद्दों पर चुनाव लड़ते हुए संघ ने उत्तर भारत में कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी। वहीं कांग्रेस के विकल्प के तौर पर देश में पहली बार 1977 में कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी ने न केवल उल्लेखनीय सफलता दर्ज की, बल्कि मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। जिनकी सरकार ने जो देशहित में सरकारी नियंत्रण और बाजार भाव में एक रूपता ला दी थी फिर किसी भी सरकार में वो जनता के हितों के लिए व्यापारियों से लड़ाई नहीं लड़ी। 


     संविधान में संशोधन की परिपाटी भी ऐसी बनी जो सरकार के हित में ना हो उसे बदल दो और जनता के हक की चीजों की परवाह भी मत करो। आजादी के पहले की GDP और बाद की GDP में भारी अन्तर की वजह पर किसी ने जांच विचार भी नहीं किया।  आज केंद्र राज्य कर नीति के कारण हर काम के लिए राज्य केंद्र की तरफ इशारा कर अपना पल्ला झाड़ लेता है। पार्टी की राजनीति के नाम पर कितने ही सरकार की बलि ले ली गई पर जनता के हितों की रक्षा ना करने के कारण वर्तमान में पश्चिम बंगाल की सरकार को राजनीतिक कारणों से हटाया नहीं जा रहा जबकि स्थानीय लोगों में सरकार से पूरी तरह से विश्वास उठ गया है क्योंकि सरकार जनता के लिए नहीं अपनी वोट बैंक के लिए सत्ता में काबिज है। जबकि मध्यप्रदेश और राजस्थान में सत्तासंघर्स के लिए निर्वाचित सरकार पर अस्थिरता फैलाई गई। राजनीति में उच्च आदर्श प्रस्तुत करने वाली पार्टी की वर्तमान सरकार अब जहांगीर की आंख के बदले आंख को ही मानो आदर्श मान लिया है।


     विदेशों में भारत का मान बढ़ाने में सफल रही सरकार भारत के खिलाफ कोई भी सूचना पर पूरी प्रहार करने वाली सरकार देश मे इतनी लचीलापन क्यों रख रही है। कोरोना काल में जब देश में शुरुआत भी नहीं हुई थी तब से काम कर रही सरकार को आखिरी क्या मजबूरी हुई कि उन्होंने जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया यह जानते हुए भी कि राज्य सरकार किसी भी राज्य में सख्ती नहीं कर सकती तो इस रोग का रोकथाम कैसे होगा?