सुप्रीम कोर्ट में अर्णब गोस्वामी मामले की सुनवाई में महाराष्ट्र सरकार ने क्यों दिया राहुल गांधी का उदाहरण?

     सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी को फौरी राहत प्रदान करते हुए तीन सप्ताह तक उनकी गिरफ्तारी या किसी अन्य तरह की दंडात्मक कार्रवाई पर शुक्रवार को रोक लगा दी। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये की गयी सुनवाई के दौरान अर्णब की याचिका पर सभी छह राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए। वहीं इस मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने राहुल गांधी का उदाहरण दिया? उन्होंने कहा कि अवमानना के एक मामले में राहुल गांधी निचली अदालत में पेश होते हैं, जबकि अर्णब को अदालत में पेश होने में दिक्कत महसूस होती है।



     कोर्ट ने अर्णब को अपनी याचिका में संशोधन की अनुमति दी तथा सभी एफआईआर और शिकायतों को अपनी याचिका में शामिल करने का निर्देश दिया। इस बीच वह अग्रिम जमानत याचिका दायर कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने मुंबई पुलिस आयुक्त को निदेर्श दिया कि वह वहां रिपब्लिक टीवी के कायार्लय और कर्मचारियों की सुरक्षा मुहैया करायें।


सुप्रीम कोर्ट में अर्णब गोस्वामी की दलीलें - गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल ने अपने टीवी प्रोग्राम में पालघर की घटना में पुलिस के गैर-जिम्मेदाराना रवैये पर सवाल खड़े किए। श्री रोहतगी ने कहा कि पालघर में 12 पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में 200 लोगों की भीड़ ने दो साधुओं की हत्या कर दी, किसी ने पूरी वारदात की वीडियो बना ली, पर दु:ख की बात यह है कि पुलिस मूकदर्शक बनी रही कि मानो इस अपराध में उनकी मिलीभगत हो। रोहतगी ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की खामोशी पर सवाल खड़े किए थे कि मरने वाले अगर अल्पसंख्यक समुदाय के होते तो क्या तब भी वह खामोश रहती। उन्होंने दलील दी कि कांग्रेस के लोगों ने एक ही मामले में कई राज्यों में मुकदमें दर्ज करवाए, जो राजनीति से प्रेरित हैं। उन्होंने सभी प्राथमिकी रद्द करने की मांग भी की।