कहा- नए समीकरण से कई लोगों के पेट में दर्द - पिछले कुछ दिनों में सूबे के राजनीतिक हालात बिल्कुल बदल गए हैं और अब बीजेपी एवं शिवसेना आमने-सामने हैं।
महाराष्ट्र में पिछले 3 सप्ताह से जारी सियासी उठापटक अब अपने अंतिम दौर में पहुंचती नजर आ रही है। हालांकि, पिछले कुछ दिनों में सूबे के राजनीतिक हालात बिल्कुल बदल गए हैं और अब बीजेपी एवं शिवसेना आमने-सामने हैं। शिवसेना ने जहां एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने पर काम शुरू कर दिया है, वहीं एक बार सरकार बनाने ने मना कर चुकी बीजेपी ने खुद के भी रेस में होने की बात कही है। शायद यही वजह है कि अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में शिवसेना ने बीजेपी पर करारा हमला बोला है। (File Photo - Uddhav Thakare)
सामना के संपादकीय में लिखा है, 'राज्य में नए समीकरण बनता देखकर कई लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया है। कौन कैसे सरकार बनाता है देखता हूं, अपरोक्ष रूप से इस प्रकार की भाषा और कृत्य किए जा रहे हैं। ऐसे श्राप भी दिए जा रहे हैं कि अगर सरकार बन भी गई तो कैसे और कितने दिन टिकेगी देखते हैं। ऐसा 'भविष्य' भी बताया जा रहा है कि 6 महीने से ज्यादा सरकार नहीं टिकेगी। ये नया धंधा लाभदायक भले हो लेकिन ये अंधश्रद्धा कानून का उल्लंघन है। अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए ये हरकत महाराष्ट्र के सामने आ रही है।'
'...और पागलपन की ओर यात्रा शुरू हो जाएगी'- संपादकीय में आगे लिखा है, 'हम महाराष्ट्र के मालिक हैं और देश के बाप हैं, ऐसा किसी को लगता होगा तो वे इस मानसिकता से बाहर आएं। ये मानसिक अवस्था 105 वालों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। ऐसी स्थिति ज्यादा समय रही तो मानसिक संतुलन बिगड़ जाएगा और पागलपन की ओर यात्रा शुरू हो जाएगी। कल आए नेता को जनता पागल या मूर्ख साबित करे ये हमें ठीक नहीं लगता। एक तो नरेंद्र मोदी जैसे नेता के नाम पर उनका खेल शुरू है और इसमें मोदी का ही नाम खराब हो रहा है।'
'ऐसी भाषा महाराष्ट्र की परंपरा को शोभा नहीं देती' - संपादकीय में लिखा है, 'हालांकि अब जो ऐसा कह रहे हैं कि अब भाजपा की सरकार आएगी वे 105 वाले पहले ही राज्यपाल से मिलकर साफ कह चुके हैं कि हमारे पास बहुमत नहीं है! इसलिए सरकार बनाने में हम असमर्थ हैं, ऐसा कहनेवाले राष्ट्रपति शासन लगते ही 'अब सिर्फ हमारी सरकार है!' ये किस मुंह से कह रहे हैं? जो बहुमत उनके पास पहले नहीं था वो बहुमत राष्ट्रपति शासन के सिलबट्टे से कैसे बाहर निकलेगा? यह सवाल तो है ही लेकिन हम लोकतंत्र और नैतिकता का खून करके 'आंकड़ा' जोड़ सकते हैं, जैसी भाषा महाराष्ट्र की परंपरा को शोभा नहीं देती।'
'कोई मुख्यमंत्री पद का अमरपट्टा लेकर पैदा नहीं होता'- सामना में आगे लिखा है, 'सत्ता या मुख्यमंत्री पद का अमरपट्टा लेकर कोई जन्म नहीं लेता। खुद को विश्वविजेता कहनेवाले नेपोलियन और सिकंदर जैसे योद्धा भी आए और गए। श्रीराम को भी राज्य छोड़ना पड़ा। औरंगजेब आखिर जमीन में गाड़ा गया। तो अजेय होने की लफ्फाजी क्यों? हमें चिंता है, महाराष्ट्र में पागलों की संख्या बढ़ने की खबर राज्य की प्रतिष्ठा में बाधक है। हम उन सबको फिर से प्रेम पूर्वक सलाह देते हैं इसे इतना दिल से मत लगाओ। 'मानव का पुत्र जगत में पराधीन है' जैसे सत्य है वैसे ही कोई अजेय नहीं है ये भी सत्य है। महाराष्ट्र में सत्य का भगवा लहराएगा।'